बुधवार, 23 सितंबर 2015

जैसे वो गुजर गया था वैसे ही ये भी गुजर जाएगा, बस फर्क इतना सा होगा तब कोई और टूटा होगा और आज कोई और टूट जाएगा   ।।

 वक्त के बुरे दौर से गुजर रहा हूँ, बहुत कुछ लिखने को मन कर रहा है मगर फिर भी अच्छे समय तक अपने को रोके रखना है , देखता हूँ कब तक सफल हो पता हूँ ।चलते चलते फिलहाल छोटी सी बात कहकर खुद को तसल्ली दे रहा हूँ , की इंसान जितना समय और तबज्जो किसी से प्यार करने में लगाता है ,उससे भी कहीं आधा समय अगर किसी के प्यार को समझने में लगा दे तो एक साथ कई जिंदगियां संवर सकती हैं  ।।
और अपने मन की बात शेयर करते हुए कहना चाहूँगा की
मायने ये नहीं रखता की किसी से आपने कितना प्यार करते हो
वल्कि मायने ये रखता है की किसी के प्यार को आप कितना समझते हो ।।

और टूटते बिखरते उन्हें बताना चाहूँगा की
कैसा ये पागलपन है मेरा कैसे मैं आधे अधूरे टूटे सपने सजाता हूँ
खुद के बिखरने की परवाह किये बिना तुम्हे समेटना चाहता हूँ ।।

डरता हूँ उस सुनामी से की कहीं तुम बिखर न जाओ  
लहरों से डर कर कहीं तुम समुन्द्र की ही न हो जाओ ।।
                                                                                                 
आधी जिन्दगी बीत गई बाकी की परवाह करता हूँ
माँ के कुछ सपने हैं वरना मैं तो हर रोज मरता हूँ ।।



                                                                                                                    संजय