बुधवार, 23 सितंबर 2015

जैसे वो गुजर गया था वैसे ही ये भी गुजर जाएगा, बस फर्क इतना सा होगा तब कोई और टूटा होगा और आज कोई और टूट जाएगा   ।।

 वक्त के बुरे दौर से गुजर रहा हूँ, बहुत कुछ लिखने को मन कर रहा है मगर फिर भी अच्छे समय तक अपने को रोके रखना है , देखता हूँ कब तक सफल हो पता हूँ ।चलते चलते फिलहाल छोटी सी बात कहकर खुद को तसल्ली दे रहा हूँ , की इंसान जितना समय और तबज्जो किसी से प्यार करने में लगाता है ,उससे भी कहीं आधा समय अगर किसी के प्यार को समझने में लगा दे तो एक साथ कई जिंदगियां संवर सकती हैं  ।।
और अपने मन की बात शेयर करते हुए कहना चाहूँगा की
मायने ये नहीं रखता की किसी से आपने कितना प्यार करते हो
वल्कि मायने ये रखता है की किसी के प्यार को आप कितना समझते हो ।।

और टूटते बिखरते उन्हें बताना चाहूँगा की
कैसा ये पागलपन है मेरा कैसे मैं आधे अधूरे टूटे सपने सजाता हूँ
खुद के बिखरने की परवाह किये बिना तुम्हे समेटना चाहता हूँ ।।

डरता हूँ उस सुनामी से की कहीं तुम बिखर न जाओ  
लहरों से डर कर कहीं तुम समुन्द्र की ही न हो जाओ ।।
                                                                                                 
आधी जिन्दगी बीत गई बाकी की परवाह करता हूँ
माँ के कुछ सपने हैं वरना मैं तो हर रोज मरता हूँ ।।



                                                                                                                    संजय 

बुधवार, 29 जुलाई 2015

करोड़ों युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत मिसाईल मैन व पूर्व राष्ट्रपति “डा० एपीजे अब्दुल कलाम” को अश्रुपूरक श्रधान्जली 


एक बार फिर से 27 / 7 तारीख और महीने का संयोग भारत के लिए दुःख के बादल लेकर आया जैसे ही कार्यालय पहुंचा तो अंतर्जाल के माद्यम से पंजाब के गुरदासपुर दीनानगर पुलिस थाणे में आतंकवादियों के हमले की जानकारी मिली ।  इसके पश्चात फिर मीडिया और सोशियल मीडिया पर तो पल पल की ख़बरों के अपडेट की बाढ़ सी आ गई ।  लोग व्हाट्सप और फेसबुक पर भीषण हादसे की दरदनाक लाईव तस्वीरें अपलोड कर हादसे में मरने वालों की
दिवंगत आत्मा की शांति प्रार्थना के साथ साथ पंजाब पुलिस के शहीद जवानो को श्रधान्जली अर्पित करते दिखे 
जहाँ पूरा दिन भारतीय सेना के लिए लिए संघर्ष भरा बीता वहीँ गुरदासपुर-दीनानगर, पठानकोट समेत सभी हाई अलर्ट स्थानों पर स्थानीय लोगों में एक चिंता भरा रहा होगा ।  दिन बीतने के पश्चात शाम ढलते हुए सेना और पंजाब पुलिस के सफल आपरेशन होने की राहत भरी सूचना मिली तो एक तरफ जहाँ आतंकवादियों को मार गिराने की ख़ुशी थी तो दूसरी और आँखों में अपने देश के पुलिस अधीक्षक और जवानो के साथ साथ बेक़सूर मासूमो को खोने का गम भी  इस हादसे से तमाम देश वासी शायद ही अभी उभरने की सोच ही रहे होंगे की कुदरत का एक और तूफानी कहर भारत माँ के मिसाईल मैन “डा० एपीजे अब्दुल कलाम” की दुखद मृत्यु की खबर लेकर आया   टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी की डा० कलाम साहब अब नहीं रहे  उस समय मेरे समेत बहुत से ऐसे भारतीय भाई रहे होंगे जिन्हें अपने पाँव तले जमीन खिसकती लगी हो ।  और मन से उस समय एक ही ख्याल शब्द बनकर जुबान पर आया भगवान् कलाम साहब की पवित्र आत्मा को शान्ति प्रदान करें।  विस्तार से जब ख़बरें सुनने के पश्चात पता चला की वो शिलोंग के एक इन्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मनेजमेंट में एक लेक्चर देनें पहुंचे थे मगर बीच लेक्चर में ही वो बेहोश होकर गिर पड़े उन्हें वहां अस्पताल ले जाया गया और डाक्टरों की टीम ने करीब पौने घंटे की मशक्कत की मगर वो माँ भारती के इस महान विज्ञानिक को बचा नहीं पाए ।  जो भी हो मगर मौजूदा स्थिति में “डा० एपीजे अब्दुल कलाम”  साहब की भरपाई सदियों तक पूरी होती दिखाई नहीं दे रही, क्यूंकि उनका व्यक्तितव सरल स्वभाव और राष्ट्र प्रेम अतुलनीय था 
कोई उन्हें मिसाइल मैन के नाम से जानता है तो कोई पूर्व राष्ट्रपतिपरन्तु सबसे अधिक लोग उन्हें उनके सीधे साधे चरित्रअसाधारण लगन और कर्म के प्रति समर्पण के लिए जानते हैं 
वो ईमानदार लोगो के आदर्श बने और युवाओं की प्रेरणा !
हमारे आदर्श क्या हैंहम क्या चाहते हैंजीवन लक्ष्य क्या हैंये इस बात से तय नही होते कि आप क्या कर रहे हैंबल्कि इससे तय होता है कि आप क्या कर सकते है ।  सपने देखना बुरा नही है और खास कर अगर वो सपने आपके जीवन लक्ष्य हो तब  मगर ऐसे सपने सिर्फ सोने पे ही आते हैं और जागने पे खत्म हो जाते हैं
कलाम साहब का जीवन भी एक सपना है ।  एक ऐसे इंसान काजिसने भरोसा किया खुद परअपने देश परअपनी टीम परअपनी सामर्थ्य पर ।  सपना,  देश को महाशक्ति बनाने काआत्मनिर्भर बनाने का,विकसित बनाने का ।  ये हमें भरोसा देता है खुद पर विश्वास करने का करने का 
कलाम साहब के कुछ शब्द जो हमें हमेशा प्रेरणा मार्गदर्शन देते रहेंगे :-
1. सपने सच हों इसके लिए पहले सपने देखना जरूरी है 
2. अलग ढंग से सोचने का साहस करोआविष्कार का साहस करोअज्ञात पथ पर चलने का साहस करो,असंभव को खोजने का साहस करो और समस्याओं को जीतो और सफल बनो. ये वो महान गुण हैं जिनकी दिशा में तुम अवश्य काम करो 
3. जब हम बाधाओं का सामना करते हैं तो हम पाते हैं कि हमारे भीतर साहस और लचीलापन मौजूद है जिसकी हमें स्वयं जानकारी नहीं थी. और यह तभी सामने आता है जब हम असफल होते हैं. जरूरत हैं कि हम इन्हें तलाशें और जीवन में सफल बनें 
4. अगर एक देश को भ्रष्टाचार मुक्त होना है तो मैं यह महसूस करता हूं कि हमारे समाज में तीन ऐसे लोग हैं जो ऐसा कर सकते हैं. ये हैं पितामाता और शिक्षक 
5.  हम अपना आज कुर्बान करते हैं जिससे हमारे बच्चों को बेहतर कल मिले 



संजय 

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

पापा आपके अनाथ बच्चे की और से आपको आश्रुपुरक श्रधान्जली....................संजय 

।। आई लव यु पापा लव यु ए लोट ।।

बरसात अपने चरम पर थी मगर उस दिन मौसम साफ़ होने के कारण धुप खिली थी और दिन में गर्मी का आभास हो रहा था लगभग दो महीने से पिता जी की तबियत में कोई सुधार होता दिखाई नहीं दे रहा था । शायद वो अब जिन्दगी से जंग लड़ने की हिम्मत हार चुके थे । मगर मेरे मन में पिता जी के लिए किसी भी हद तक जाने की जिद्द बनी हुई थी । ओर मैंने फैसला किया की पिता जी को पठानकोट किसी अच्छे हॉस्पिटल में लेकर जाएँ । बड़े भाई ने भी सहमती दी और एक गाडी वाले को स्टोपेज पर बुलाया, और बड़े भाई ने पिता जी को पीठ  पर उठाकर लगभग दो किलोमीटर स्टोपेज तक पहुंचाया जहाँ तक गाडी आ सकती थी । चूँकि हमारे गाँव में अभी तक भी सड़क नहीं पहुंची है । और पैदल दो किलोमीटर चलकर गाडी पकडनी पड़ती है । जितने में हम सड़क पर पहुंचे गाडी वाला वहां पहुँच चुका था हमने पिता जी को गाडी में बिठाया और पठानकोट एक निजी हॉस्पिटल में लेकर आ गए । वहां पर डाक्टर ने उनको इमरजेंसी में प्राथमिक उपचार के बाद एडमिट कर निजी वार्ड में शिफ्ट कर दिया । और वहां पर ही डाक्टर गुप्ता पिता जी का केस देखने लगे । हॉस्पिटल में में पिता जी के साथ रहा हर पल पिता जी की देखरेख मेरे जिम्मे थी । पिता जी को कमजोरी ने इतना जकड लिया था की वो अब बोल भी नहीं पाते थे वो केवल धीमे से इशारे करते थे । वो कुछ भी खाने से इनकार करते थे । उनके नाक से पाईप के जरिये ही नर्से जूस दिया करती थी । पिटा जी की बिगडती हालत को देखकर डाक्टर से में लगातर पूछता रहता की डाक्टर साहब क्या कुछ सुधार नजर आ रहा है आपको ? तो उनका हर बार यही जबाब की हम कोशिश कर रहे हैं बाकी मरीज आपके सामने ही है । मेने कहा अगर आपको लगता की आप कुछ भी नहीं कर पा रहे तो हमें कहीं और रेफर कर दें ताकि हम पिता जी को कही और लेकर जाएँ तो उन्होंने कुछ टेस्ट किये और उसके बाद कहा की उनके शारीर में प्लेटलेट की संख्या बहुत गिर चुकी है , और इने तुरंत प्लेटलेट्स चढाने की आवश्यकता है आप खून का प्रबंध करिए । अब खून के लिए की रिश्तेदारों को फोन लगाया मगर किसी ने भी हामी नहीं भरी । सयोगवश मेरा , भाई और पिता जी का ब्लड ग्रुप एक समान था । अब दो तो हम हो गए इसके अलावा भी अगले दिन दो लोगों का ब्लड और चाहिए था । तो मेने अपने उस वक्त के कम्पनी में काम करने वाले अपने सहयोगी मित्रों को फोन किया तो मेरे तीन दोस्त उसी शाम को चंडीगढ़ से नाईट बस पकड़ कर पठानकोट पहुंचे । वहां पर दो का खून मेरे पिता जी के लिए तथा एक मित्र ने वहां पर किसी अनजान को खून देकर उसकी जिन्दगी गुलजार की । इतना सब करने के पश्चात भी वहां पर हमें पिता जी की हालत में सुधार नहीं दिखा । बस पिता जी की एक ही जिद्द बार बार की मुझे घर ले चलो, वो कहते थे पुत्र में ठीक नहीं हो सकता मुझे मेरे घर ले चलो, पिता की इन बातों को याद करते मेरे अंको के आंसू नहीं रुक पार रहे । पर क्या करते हम तो पिता जी को स्वस्थ करके ले जाना चाहते थे , बावजूद मेने पिता की बात मान ली और डाक्टर से डिस्चार्ज करने को कहा , डाक्टर ने पूरा बिल चुकाने के बाद हमें रिलीज कर दिया । हम गाडी में बैठ कर वापिस उदास मन से घर की और लौट रहे थे। घर पहुँचने के बाद बरामदे में पिता जी की चारपाई लगी थी आने जाने हाल पूछने वाले रिश्तेदारों का तांता लगा रहता था । परन्तु अब तो मेरे मन ने भी हार मान ली थी । और पिता जी के रेगिस्तान से भी जयदा तपते शरीर की आग को शांत करने की मैं भी मन ही मन भगवान् से प्रार्थना करने लगा था । सच कहूँ ना चाहते हुए भी मैंने भगवान् से कहा भगवान् अब मैं पापा को और कष्ट में नहीं देख पाउँगा । प्लीज भगवान् आप पापा जी को अपने आगोश में ले लो । उनकी स्थिति को देखते हुए बस यही लगता था की आज का दिन ही पापा हमारे बीच हैं बस । मगर तीन चार दिनों से स्थिति बेहद खराब होती गई और उस दिन मेने पापा को मिश्री खाने को दी मगर वो खाने से मना करते हुए हाथ हिलाने लगे । मैंने भी थोड़ा नाराज होते हुए कहा आप खाओगे नहीं कुछ भी तो कैसे चलेगा , आपको इसी बजह से कमजोरी है और बुखार भी इसी कारण शायद । मगर पिता जी मेरे से गुस्से हो गए उन्होंने आँखे बंद कर ली और बड़े भाई को करवट बदलवाने का इशारा किया । मैं वहां से हट कर कुर्सी पर बैठ गया और अपने मोबाईल पर कुछ करने लगा , इतने में पिता जी ने बड़े भाई को खाने का इशारा करते हुए सभी को खाना खाने के लिए कहा हम सभी ने खाना खाया तो बाहर देखा चाचा जी भी पिता जी का हाल चाल पूछने पहुँच चुके थे । बस पिता जी ने तक़रीबन आधे घंटे तक चाचा जी से इशारों में ही कुछ वार्तालाप किया जो न तो चाचा जी को ही पूरा समझ आया और ना ही हम में से किसी को । बस इतने में ही करीब समय रात के पौने बजे पिता जी को बेहोशी का दौरा पडा और सभी ने एक दम उन्हें अपने हाथों पर उठा लिया बस फिर क्या बचा था । शेष जो था वो पिता जी का भोतिक शारीर मात्र  अब पिता जी इस संसार से हम सभी को छोड़ कर अपने नए पुड़ाव की और जा रहे थे और हम सभी रोते विलखते तड़फते खुद को अनाथ महसूस कर रहे थे, तब से लेकर आज का दिन कभी नहीं बुला और शायद न कभी भुलेगा , तारीख वही संयोग से दिन भी मंगलवार ही है मगर साल वो 2009 था और आज 2015 पिता जी आज आपके बच्चे को अनाथ हुए पूरे 6 वर्ष हो गए । इस जीवन के बाहर बहुत कुछ बदल चुका है , मगर भीतर बिलकुल वैसा ही है वही प्यार वही एहसास वही आभास वही आवाज सुनाई देती है मगर अब डर नहीं है आपका काश ये डर आज भी होता तो शायद में बहुत कुछ बना चुका होता । पापा अफ़सोस रहेगा उन बातों का जो मैंने आपकी नहीं मानी , आज किसी को बता नहीं पाता हूँ  मगर सजा उन्ही की पा रहा हूँ जब भी दुनिया के रंगों को देखता हूँ तो उस पल खुद को आग में उबलते महसूस करता हूँ । इन 6 वर्षों में अनंत बार आप मेरे सपनो में आये होंगे मगर फिर भी अब वो बात कहाँ जो इन 6 वर्षों से पहले आपके साथ चूल्हे के आर पार बैठ कर होती थी । आई लव यु पापा लव यु ए लोट । आप जहाँ भी रहो बस खुस रहो और अगले जन्म एक बार फिर मेरे पिता बन कर मुझे अपनी सेवा का अवसर दो पापा , पता है मैंने इक्का दुक्का शरारतो को छोड़ कर कभी आपको दुखी नहीं किया होगा मगर फिर भी दो इच्छाएं , पहली मुझे अपने साथ रखकर मुझे खाना बनाकर खिलाने की और दूसरी जल्द से शादी करने की पूरी नहीं कर पाया । तो पापा अब आपको कैसे बताऊँ की मैं उन दोनों को अभी तक भी पूरी नहीं कर पाया हूँ । पापा बस अब कुछ भी नहीं कह पाउँगा अगर आप देख रहे हों तो जरुर स्पर्श कर दो मेरे सर पे अपना वही वाला हाथ रख दो न जो कभी बचपन में आपके पैर छुते समय रखते रखते थे ।  


।।अंत में पापा आपके अनाथ बच्चे की और से आपको आश्रुपुरक श्रधान्जली ।।


                           आपका संजय 

रविवार, 3 मई 2015

किसने लिखी तेरी किस्मत ...

प्यार शब्द कहने और सुनने में बहुत ही अच्छा और सुखमयी लगता है परन्तु जब यही प्यार किसी लड़के को किसी की बेटी या बहन के साथ हो जाता है, तो लड़की के घर वालों को ये एकदम भोंडा असमाजिक असभ्य और बेशर्म क्यूँ लगने लगता है ?
या यूं कहूँ की प्यार हमेशा दुसरे की बहन बेटी के साथ ही अच्छा लगता है, मगर जब यही प्यार कोई हमारी बहन , बेटी के साथ करता है तो हम उसे मारने पीटने पर उतारू क्यूँ हो जाते हैं ?
क्या कोई बता सकता है ऐसा क्यूँ होता है ? एक लड़की माँ बाप के साए में हंसती खेलती बड़ी होती है धीरे धीरे उसकी पढाई पूरी होने लगती है तो माँ बाप उसके लिए अच्छा रिश्ता तलाशने लगते हैं, जैसे की हर माँ बाप का ख्वाब होता है की उनकी बेटी को दुनिया में सबसे अच्छा दामाद मिले अच्छा संसार मिले बहुत खुशियाँ मिलें यानि वो चाहते हैं बेटी को पूरी उम्र कोई दुःख ना मिले , इसी सिलसिले में रिश्ते दारों को भी बेटी के लिए अच्छा वर ढूँढने में मदद करने के लिए कहा जाता है , मगर रिश्तेदार तो अपना फर्ज निभायेंगे उनको अच्छे बुरे से कुछ ख़ास फर्क नहीं उनको बस अपना फर्ज निभाना है मामा होने का चाचा होने का फूफा होने का बस फिर चाहे लड़का जैसा भी हो बस लड़का होना चाहिए , अगर लड़के को लड़की पसंद आ गई तो शादी कर ही डालो पर लड़की को लड़का पसंद नहीं और उसने मन्हा कर दिया तो लड़की का चरित्र खराब लड़की चालू लड़की ओवर र्स्मार्ट ना जाने क्या क्या सुनाया जाएगा लड़की समेत लड़की के घर वालों को ...मामा कहेगा अपनी बहन से तुमने इसे मोबाईल दिला रखा है जरुर किसी से चक्कर होगा मेरी होती तो में आग लगाकर ज़िंदा जला देता गोली मार देता वगेराह वगेराह..
और अगर यही बात लड़के की और से होती तो क्या किसी में हिम्मत होती पूछने की लड़के से की क्यूँ पसंद नहीं आई तेरे को ?? कोई कहेगा की लड़के के पास मोबाईल है इसका किसी के साथ चक्कर है ? नहीं फिर तो लड़के की चाहे 10 महिला मित्र भी होंगी तो भी चलेगा क्यूंकि वो लड़का है वो पुरुष है ,सब यही कहेंगे  चलो कोई बात नहीं लड़की की किस्मत में नहीं था और जहाँ होना होगा वहीँ होगा कोई और देखते हैं ...
और मानो घर वालों के कहने पे लड़की ने अपनी भावनाओं की कुर्बानी देकर भी शादी कर ली तो आगे चल कर लड़की को परेशानी हुई तो यही रिश्तेदार फिर लड़की की किस्मत का हवाला देकर उसे समाज के दर्द भरे दलदल के जीवन में धकेल देते और लड़की तमाम उम्र अपने उस पल को कोसती रहती जिस पल उसने अपने अरमानो की बलि दे दी थी ..वो जरुर सोचती की काश मेने एक पल हिम्मत दिखाकर मन्हा कर दिया होता तो आज मेरा हाल ये ना होता परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होती ....
समाज हमेशा दोगली चालें चलता है ..दोगली बाते करता है पर ध्यान रहे ये दूसरों के लिए दूसरों के साथ अपने लिए नहीं अपने साथ नहीं ..!!

         
                                                                                                                  ........संजय राणा


शनिवार, 2 मई 2015

इक बेटी कि अपनी माँ से गुहार..............
तेरे बदन में लेटी-लेटी,
सपनों में ही उड़ती रही हूँ
जब भी चाहा उड़ना तुमने,
सोचों में भी उड़ती रही हूँ
माँ, मेरे सपने बहुत बड़े है
जीने का एक मौका ही दे दो
नहीं बनूँगी बोझ मैं तुम पर,
खोल दो मुट्ठी, उड़ जाने दो


.........संजय 
अफ़सोस की शिक्षित उन्न्त कहलाये जाने वाले भारत में आज भी बेटियों पर बंदिशें जारी हैं .....
पहले शिक्षा का प्रसार स्त्रियों तक नगण्य था। उनमें अधिकारों की समझ भी नहीं थी। उस स्थिति में अपनी खुशियों से समझौता करना उनकी नियति थी। लेकिन आज उनमें स्वतंत्रता, समानता, सम्मान पाने का भाव  जगा है। अब वे लड़कों के बराबर शिक्षित हैं, समझदार हैं और पैसे भी कमा रही हैं तो क्यों पुराने रिवाजों की गैर बराबरी को ढोती रहें? आज भी मध्यवर्गीय परिवार में प्रेम विवाह किसी बड़े गुनाह से कम नहीं समझा जाता। हां, परंपरा के नाम पर हमारे समाज को बेमेल विवाह, बाल विवाह पर कोई आपत्ति नहीं है। ब्याह कर दूसरे घर से लाई गई बेटी दहेज की खातिर बलि चढ़ा दी जाती है। शादी से पहले बार-बार लड़कियों की लंबाई, मोटाई, गोराई की जांच का तमाशा कर उसके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाई जाती है। परंपरा के नाम पर परिवार वालों के सामने परिवार की बेटी इस दौरान कितनी बार मरती-जीती है, इसकी चिंता किसी बाप-भाई को नहीं सताती। लेकिन अगर लड़की सम्मान, प्रेम के साथ किसी से खुद खुशी-खुशी विवाह करे तो परिवार की अब तक अर्जित सारी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाती है ..आखिर कब तक हम सच्च से मुह फेरते रहेंगे और अपने जिगर के टुकड़ों की लाशें करते रहेंगे ?



.........संजय 
बंदिशे किसी को नहीं भाती ... 
आपने वो कहानी तो सुनी ही होगी जहाँ किसान के घर रहने वाली चिड़िया को राजा अपने घर ले जाता है .चिड़िया के लिए सोने का पिंजरा बनवाया जाता है ,तरह - तरह के पकवान खिलाये जाते हैं ... लेकिन कुछ ही दिनों बाद चिड़िया मर जाती है ...
राजा बहुत आश्चर्यचकित होता है ...सोचता है ... सारे ऐशो आराम होने के बाबजूद भी चिड़िया मर कैसे गयी !! फिर एक दिन उसे अपनी गलती का अहसास है ...
दरअसल ... किसान के यहाँ कोई पिंजड़ा नहीं था चिड़िया आजाद थी ... वहां उसे अन्य पक्षियों के साथ चहचहाने की आज़ादी थी ... 
जो उससे महल में आने बाद छीन ली गयी ... और चिड़िया ने सोने के पिंजरे में ही दम तोड़ दिया ...
चिड़िया की तरह ही इंसानों को घुटन का अहसास तभी होता है जब उसे बंदिशों में जकड़ा जाये ... हमारे समाज में " वीमेन फर्स्ट " की तर्ज पर बंदिशों की शुरुआत भी " लड़की " से होती है
स्कूल जाने वाले समय से ही उसे भैया का हाथ पकड़ा दिया जाता है ... कॉलेज जाने से पहले नसीहतों के साथ घर से अलविदा कहा जाता है , लड़कों से बात करना भी लड़की के लिए नियमों से बंधा होता है ..यानि , बात सिर्फ कॉपी किताब माँगने तक ही सीमित रखी जाये ... इसके आलावा उसके पहनावे , जॉब करना ,मनपसंद लड़के से शादी करना , जैसे और भी कई मुद्दे हैं जिनमे लड़कियों के लिए समाज में बंदिशों का जाल बिछा है
कभी - कभी सोचकर हैरानी होती है कि ये वही लोग होते हैं जो नारी सशक्तिकरण के बड़े - बड़े पोस्टर लेकर सड़कों पर निकलते है और बेटियों को उसी सड़क पर अकेले जाने से रोकते हैं... 
प्राय घरों में भाई - बहन के बीच झगड़े का कारण बहिन पर लगी बंदिशे होती हैं ... 
भाई दोस्तों के साथ घूमने जाता है ,रात को घर देर से आता है ,जॉब के लिए दूसरे शहर रहता है ,उसकी बहुत सी लडकियाँ दोस्त हैं , अपनी पसंद की लड़की से शादी भी कर सकता है ...उसे हर बात की आज़ादी है लेकिन !!!
बहन को इन सब बातों के लिए नियम समझाए जाते हैं ..और बंदिशों से बांध दिया जाता है ...
आम तौर पर देखें तो घरों में लड़का यदि अपनी पसंद की लड़की का चुनाव करता है तो बहन बहुत खुश होती है ,उसकी मदद करती है और शादी से पहले ही लड़की को अपनी भाभी मान लेती है पर ... यदि बहन के प्रेम का पता भाई को चले तो प्यारे भैया का रोद्र रूप बहन को झेलना पड़ता है जहाँ कई बार उसके होने वाले प्रेमी की भी धुनाई सुनिश्चित होती है... फिर तमाम बंदिशे उसी पल से उस पर लगा दी जाती हैं ... और अचानक भाई बॉडीगार्ड की तरह वर्ताव भी करने लागता है ..
खास बात ये है कि ऐसे घरों में लड़की की सहेलियों तक का चुनाव कई बार उसके घरवाले ही करते हैं ,घर - परिवार ,संस्कार व् अन्य चीजों के आधार पर वो अपनी सहेली चुन सकती है वरना ... " वो सहेली ठीक नहीं हैं " ये कहकर दोस्ती खत्म करा दी जाती है ...
बात सिर्फ सहेलियों के चुनाव की ही नहीं बल्कि उसे क्या पहनना है ये भी घरवाले ही निर्धारित करते हैं
रेप , छेड़छाड़ जैसी घटना होने के बाद सबसे ज्यादा सवाल लड़की के पहनावे पर उठते हैं ... और आम तौर पर गली मोहल्लों में हॉट टॉपिक " लड़की का पहनावा " ही रहता है ... 
वर्मा जी की बेटी स्कर्ट पहनती है ... ये कॉलोनी में चर्चा का विषय बन जाता है लेकिन उन्हीं वर्मा जी का बेटा शॉर्ट्स पहनकर घूमे तो उसे कोई नहीं देखता ... शायद इन्हीं बातों से महिला सशक्तिकरण की कलई खुलती है ...
इन सबके पीछे पूरी तरह से माँ बाप को दोष देना भी उचित नहीं होता क्यूँकी सामाजिक दायरे में रहकर उन्हें भी हर नियम क़ानून अपनी बेटी के ऊपर थोपने पड़ते हैं 
माता पिता कई बार बेटी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नौकरी कराते हैं लेकिन ये उनकी बेटी के वैवाहिक जीवन के लिये मुसीबत बन जाता है ... कई बार लड़की की शादी इस शर्त पर की जाती है कि शादी के बाद लड़की नौकरी करना बंद कर देगी ... 
अजीब लेकिन सत्य है इसके पीछे अवधारणा है कि नौकरी करने वाली महिलाएं घर को अच्छे ढंग से नहीं संभाल पाती ... 
वर्तमान में एक तरफ जहाँ कई परिवारों में पति - पत्नी मिलकर घर - बाहर दोनों का काम संभाल रहे हैं तो दूसरी तरफ गृह कलेश का मुख्य कारण पत्नी का नौकरी करना बन गया है ... और कई बार ये वही पुरुष होते हैं जो अपने ऑफिस की लड़की को आत्मनिर्भर बनने के गुण सिखाते हैं ...और घर में पत्नी पर बंदिशे लगाते हैं ...
ये कहना गलत नहीं होगा कि स्त्रियों को मात्र उपभोग की वस्तु समझने वाला समाज आज भी उसी दिशा में है जहाँ बंदिशे कम जरुर हुयीं हैं लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं हुयीं हैं..बीच - बीच में घटनाओं के सामानांतर स्त्रियों के हक के लिए सवाल तो उठते हैं , आन्दोलन होते हैं ,जुलूस निकलते हैं ,मेसेज भी बनते हैं ... 
एक मेसेज मेरे पास भी आया था " बेटियों को मत सिखाइए कि क्या पहनना है ,बेटों को सिखाइए कि नजर ठीक रखें ... 
मेसेज अच्छा था ,बहुत प्रभावशाली भी ... पर
कुछ समय के बाद गायब हो गया ... ये भी जानती हूँ कि अब वो किसी अन्य महिला के साथ हुयी अगली घटना का इन्तजार कर रहा होगा और लोग फिर उसे भेजना शुरू कर देंगे ... 
यदि सही मायने में बंदिशे लगानी हैं तो पुरुष पर लगाने की जरुरत है ताकि महिलाओं के साथ हो रही दिल दहलाने वाली घटनाओं को रोका जा सके ...
समानता का अधिकार माँगना है तो बंदिशों पर भी माँगों और यदि नहीं माँग सकती तो
बंदिशों के बादल यूँ ही मंडराते रहेंगे ... और सड़क पर पुरुष तुम्हारे हक की आवाज उठाते रहेंगे