शनिवार, 2 मई 2015

अफ़सोस की शिक्षित उन्न्त कहलाये जाने वाले भारत में आज भी बेटियों पर बंदिशें जारी हैं .....
पहले शिक्षा का प्रसार स्त्रियों तक नगण्य था। उनमें अधिकारों की समझ भी नहीं थी। उस स्थिति में अपनी खुशियों से समझौता करना उनकी नियति थी। लेकिन आज उनमें स्वतंत्रता, समानता, सम्मान पाने का भाव  जगा है। अब वे लड़कों के बराबर शिक्षित हैं, समझदार हैं और पैसे भी कमा रही हैं तो क्यों पुराने रिवाजों की गैर बराबरी को ढोती रहें? आज भी मध्यवर्गीय परिवार में प्रेम विवाह किसी बड़े गुनाह से कम नहीं समझा जाता। हां, परंपरा के नाम पर हमारे समाज को बेमेल विवाह, बाल विवाह पर कोई आपत्ति नहीं है। ब्याह कर दूसरे घर से लाई गई बेटी दहेज की खातिर बलि चढ़ा दी जाती है। शादी से पहले बार-बार लड़कियों की लंबाई, मोटाई, गोराई की जांच का तमाशा कर उसके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाई जाती है। परंपरा के नाम पर परिवार वालों के सामने परिवार की बेटी इस दौरान कितनी बार मरती-जीती है, इसकी चिंता किसी बाप-भाई को नहीं सताती। लेकिन अगर लड़की सम्मान, प्रेम के साथ किसी से खुद खुशी-खुशी विवाह करे तो परिवार की अब तक अर्जित सारी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाती है ..आखिर कब तक हम सच्च से मुह फेरते रहेंगे और अपने जिगर के टुकड़ों की लाशें करते रहेंगे ?



.........संजय 

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