शनिवार, 2 मई 2015

इक बेटी कि अपनी माँ से गुहार..............
तेरे बदन में लेटी-लेटी,
सपनों में ही उड़ती रही हूँ
जब भी चाहा उड़ना तुमने,
सोचों में भी उड़ती रही हूँ
माँ, मेरे सपने बहुत बड़े है
जीने का एक मौका ही दे दो
नहीं बनूँगी बोझ मैं तुम पर,
खोल दो मुट्ठी, उड़ जाने दो


.........संजय 

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