इक
बेटी कि अपनी माँ से गुहार..............
तेरे बदन में लेटी-लेटी,
सपनों में ही उड़ती रही हूँ
जब भी चाहा उड़ना तुमने,
सोचों में भी उड़ती रही हूँ
सपनों में ही उड़ती रही हूँ
जब भी चाहा उड़ना तुमने,
सोचों में भी उड़ती रही हूँ
माँ, मेरे सपने बहुत बड़े है
जीने का एक मौका ही दे दो
नहीं बनूँगी बोझ मैं तुम पर,
खोल दो मुट्ठी, उड़ जाने दो
जीने का एक मौका ही दे दो
नहीं बनूँगी बोझ मैं तुम पर,
खोल दो मुट्ठी, उड़ जाने दो
.........संजय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
मेरे लिखे किसी भी लेख या उसके किसी लाईन, शब्द या फिर चित्रों से आप सहमत या असहमत हो सकते हैं , अत: आप मर्यादित भाषा का उपयोग करते हुए मेरे लेख पर टिपण्णी कर सकते हैं , अच्छे और बुरे दोनों ही परिस्थितियों में आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार रहेगा , क्यूंकि आपकी प्रतिक्रिया की मुझे आगे लिखते रहने के लिए प्रेरित करेगी ।