शनिवार, 2 मई 2015

बंदिशे किसी को नहीं भाती ... 
आपने वो कहानी तो सुनी ही होगी जहाँ किसान के घर रहने वाली चिड़िया को राजा अपने घर ले जाता है .चिड़िया के लिए सोने का पिंजरा बनवाया जाता है ,तरह - तरह के पकवान खिलाये जाते हैं ... लेकिन कुछ ही दिनों बाद चिड़िया मर जाती है ...
राजा बहुत आश्चर्यचकित होता है ...सोचता है ... सारे ऐशो आराम होने के बाबजूद भी चिड़िया मर कैसे गयी !! फिर एक दिन उसे अपनी गलती का अहसास है ...
दरअसल ... किसान के यहाँ कोई पिंजड़ा नहीं था चिड़िया आजाद थी ... वहां उसे अन्य पक्षियों के साथ चहचहाने की आज़ादी थी ... 
जो उससे महल में आने बाद छीन ली गयी ... और चिड़िया ने सोने के पिंजरे में ही दम तोड़ दिया ...
चिड़िया की तरह ही इंसानों को घुटन का अहसास तभी होता है जब उसे बंदिशों में जकड़ा जाये ... हमारे समाज में " वीमेन फर्स्ट " की तर्ज पर बंदिशों की शुरुआत भी " लड़की " से होती है
स्कूल जाने वाले समय से ही उसे भैया का हाथ पकड़ा दिया जाता है ... कॉलेज जाने से पहले नसीहतों के साथ घर से अलविदा कहा जाता है , लड़कों से बात करना भी लड़की के लिए नियमों से बंधा होता है ..यानि , बात सिर्फ कॉपी किताब माँगने तक ही सीमित रखी जाये ... इसके आलावा उसके पहनावे , जॉब करना ,मनपसंद लड़के से शादी करना , जैसे और भी कई मुद्दे हैं जिनमे लड़कियों के लिए समाज में बंदिशों का जाल बिछा है
कभी - कभी सोचकर हैरानी होती है कि ये वही लोग होते हैं जो नारी सशक्तिकरण के बड़े - बड़े पोस्टर लेकर सड़कों पर निकलते है और बेटियों को उसी सड़क पर अकेले जाने से रोकते हैं... 
प्राय घरों में भाई - बहन के बीच झगड़े का कारण बहिन पर लगी बंदिशे होती हैं ... 
भाई दोस्तों के साथ घूमने जाता है ,रात को घर देर से आता है ,जॉब के लिए दूसरे शहर रहता है ,उसकी बहुत सी लडकियाँ दोस्त हैं , अपनी पसंद की लड़की से शादी भी कर सकता है ...उसे हर बात की आज़ादी है लेकिन !!!
बहन को इन सब बातों के लिए नियम समझाए जाते हैं ..और बंदिशों से बांध दिया जाता है ...
आम तौर पर देखें तो घरों में लड़का यदि अपनी पसंद की लड़की का चुनाव करता है तो बहन बहुत खुश होती है ,उसकी मदद करती है और शादी से पहले ही लड़की को अपनी भाभी मान लेती है पर ... यदि बहन के प्रेम का पता भाई को चले तो प्यारे भैया का रोद्र रूप बहन को झेलना पड़ता है जहाँ कई बार उसके होने वाले प्रेमी की भी धुनाई सुनिश्चित होती है... फिर तमाम बंदिशे उसी पल से उस पर लगा दी जाती हैं ... और अचानक भाई बॉडीगार्ड की तरह वर्ताव भी करने लागता है ..
खास बात ये है कि ऐसे घरों में लड़की की सहेलियों तक का चुनाव कई बार उसके घरवाले ही करते हैं ,घर - परिवार ,संस्कार व् अन्य चीजों के आधार पर वो अपनी सहेली चुन सकती है वरना ... " वो सहेली ठीक नहीं हैं " ये कहकर दोस्ती खत्म करा दी जाती है ...
बात सिर्फ सहेलियों के चुनाव की ही नहीं बल्कि उसे क्या पहनना है ये भी घरवाले ही निर्धारित करते हैं
रेप , छेड़छाड़ जैसी घटना होने के बाद सबसे ज्यादा सवाल लड़की के पहनावे पर उठते हैं ... और आम तौर पर गली मोहल्लों में हॉट टॉपिक " लड़की का पहनावा " ही रहता है ... 
वर्मा जी की बेटी स्कर्ट पहनती है ... ये कॉलोनी में चर्चा का विषय बन जाता है लेकिन उन्हीं वर्मा जी का बेटा शॉर्ट्स पहनकर घूमे तो उसे कोई नहीं देखता ... शायद इन्हीं बातों से महिला सशक्तिकरण की कलई खुलती है ...
इन सबके पीछे पूरी तरह से माँ बाप को दोष देना भी उचित नहीं होता क्यूँकी सामाजिक दायरे में रहकर उन्हें भी हर नियम क़ानून अपनी बेटी के ऊपर थोपने पड़ते हैं 
माता पिता कई बार बेटी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नौकरी कराते हैं लेकिन ये उनकी बेटी के वैवाहिक जीवन के लिये मुसीबत बन जाता है ... कई बार लड़की की शादी इस शर्त पर की जाती है कि शादी के बाद लड़की नौकरी करना बंद कर देगी ... 
अजीब लेकिन सत्य है इसके पीछे अवधारणा है कि नौकरी करने वाली महिलाएं घर को अच्छे ढंग से नहीं संभाल पाती ... 
वर्तमान में एक तरफ जहाँ कई परिवारों में पति - पत्नी मिलकर घर - बाहर दोनों का काम संभाल रहे हैं तो दूसरी तरफ गृह कलेश का मुख्य कारण पत्नी का नौकरी करना बन गया है ... और कई बार ये वही पुरुष होते हैं जो अपने ऑफिस की लड़की को आत्मनिर्भर बनने के गुण सिखाते हैं ...और घर में पत्नी पर बंदिशे लगाते हैं ...
ये कहना गलत नहीं होगा कि स्त्रियों को मात्र उपभोग की वस्तु समझने वाला समाज आज भी उसी दिशा में है जहाँ बंदिशे कम जरुर हुयीं हैं लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं हुयीं हैं..बीच - बीच में घटनाओं के सामानांतर स्त्रियों के हक के लिए सवाल तो उठते हैं , आन्दोलन होते हैं ,जुलूस निकलते हैं ,मेसेज भी बनते हैं ... 
एक मेसेज मेरे पास भी आया था " बेटियों को मत सिखाइए कि क्या पहनना है ,बेटों को सिखाइए कि नजर ठीक रखें ... 
मेसेज अच्छा था ,बहुत प्रभावशाली भी ... पर
कुछ समय के बाद गायब हो गया ... ये भी जानती हूँ कि अब वो किसी अन्य महिला के साथ हुयी अगली घटना का इन्तजार कर रहा होगा और लोग फिर उसे भेजना शुरू कर देंगे ... 
यदि सही मायने में बंदिशे लगानी हैं तो पुरुष पर लगाने की जरुरत है ताकि महिलाओं के साथ हो रही दिल दहलाने वाली घटनाओं को रोका जा सके ...
समानता का अधिकार माँगना है तो बंदिशों पर भी माँगों और यदि नहीं माँग सकती तो
बंदिशों के बादल यूँ ही मंडराते रहेंगे ... और सड़क पर पुरुष तुम्हारे हक की आवाज उठाते रहेंगे 

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