मंगलवार, 21 जुलाई 2015

पापा आपके अनाथ बच्चे की और से आपको आश्रुपुरक श्रधान्जली....................संजय 

।। आई लव यु पापा लव यु ए लोट ।।

बरसात अपने चरम पर थी मगर उस दिन मौसम साफ़ होने के कारण धुप खिली थी और दिन में गर्मी का आभास हो रहा था लगभग दो महीने से पिता जी की तबियत में कोई सुधार होता दिखाई नहीं दे रहा था । शायद वो अब जिन्दगी से जंग लड़ने की हिम्मत हार चुके थे । मगर मेरे मन में पिता जी के लिए किसी भी हद तक जाने की जिद्द बनी हुई थी । ओर मैंने फैसला किया की पिता जी को पठानकोट किसी अच्छे हॉस्पिटल में लेकर जाएँ । बड़े भाई ने भी सहमती दी और एक गाडी वाले को स्टोपेज पर बुलाया, और बड़े भाई ने पिता जी को पीठ  पर उठाकर लगभग दो किलोमीटर स्टोपेज तक पहुंचाया जहाँ तक गाडी आ सकती थी । चूँकि हमारे गाँव में अभी तक भी सड़क नहीं पहुंची है । और पैदल दो किलोमीटर चलकर गाडी पकडनी पड़ती है । जितने में हम सड़क पर पहुंचे गाडी वाला वहां पहुँच चुका था हमने पिता जी को गाडी में बिठाया और पठानकोट एक निजी हॉस्पिटल में लेकर आ गए । वहां पर डाक्टर ने उनको इमरजेंसी में प्राथमिक उपचार के बाद एडमिट कर निजी वार्ड में शिफ्ट कर दिया । और वहां पर ही डाक्टर गुप्ता पिता जी का केस देखने लगे । हॉस्पिटल में में पिता जी के साथ रहा हर पल पिता जी की देखरेख मेरे जिम्मे थी । पिता जी को कमजोरी ने इतना जकड लिया था की वो अब बोल भी नहीं पाते थे वो केवल धीमे से इशारे करते थे । वो कुछ भी खाने से इनकार करते थे । उनके नाक से पाईप के जरिये ही नर्से जूस दिया करती थी । पिटा जी की बिगडती हालत को देखकर डाक्टर से में लगातर पूछता रहता की डाक्टर साहब क्या कुछ सुधार नजर आ रहा है आपको ? तो उनका हर बार यही जबाब की हम कोशिश कर रहे हैं बाकी मरीज आपके सामने ही है । मेने कहा अगर आपको लगता की आप कुछ भी नहीं कर पा रहे तो हमें कहीं और रेफर कर दें ताकि हम पिता जी को कही और लेकर जाएँ तो उन्होंने कुछ टेस्ट किये और उसके बाद कहा की उनके शारीर में प्लेटलेट की संख्या बहुत गिर चुकी है , और इने तुरंत प्लेटलेट्स चढाने की आवश्यकता है आप खून का प्रबंध करिए । अब खून के लिए की रिश्तेदारों को फोन लगाया मगर किसी ने भी हामी नहीं भरी । सयोगवश मेरा , भाई और पिता जी का ब्लड ग्रुप एक समान था । अब दो तो हम हो गए इसके अलावा भी अगले दिन दो लोगों का ब्लड और चाहिए था । तो मेने अपने उस वक्त के कम्पनी में काम करने वाले अपने सहयोगी मित्रों को फोन किया तो मेरे तीन दोस्त उसी शाम को चंडीगढ़ से नाईट बस पकड़ कर पठानकोट पहुंचे । वहां पर दो का खून मेरे पिता जी के लिए तथा एक मित्र ने वहां पर किसी अनजान को खून देकर उसकी जिन्दगी गुलजार की । इतना सब करने के पश्चात भी वहां पर हमें पिता जी की हालत में सुधार नहीं दिखा । बस पिता जी की एक ही जिद्द बार बार की मुझे घर ले चलो, वो कहते थे पुत्र में ठीक नहीं हो सकता मुझे मेरे घर ले चलो, पिता की इन बातों को याद करते मेरे अंको के आंसू नहीं रुक पार रहे । पर क्या करते हम तो पिता जी को स्वस्थ करके ले जाना चाहते थे , बावजूद मेने पिता की बात मान ली और डाक्टर से डिस्चार्ज करने को कहा , डाक्टर ने पूरा बिल चुकाने के बाद हमें रिलीज कर दिया । हम गाडी में बैठ कर वापिस उदास मन से घर की और लौट रहे थे। घर पहुँचने के बाद बरामदे में पिता जी की चारपाई लगी थी आने जाने हाल पूछने वाले रिश्तेदारों का तांता लगा रहता था । परन्तु अब तो मेरे मन ने भी हार मान ली थी । और पिता जी के रेगिस्तान से भी जयदा तपते शरीर की आग को शांत करने की मैं भी मन ही मन भगवान् से प्रार्थना करने लगा था । सच कहूँ ना चाहते हुए भी मैंने भगवान् से कहा भगवान् अब मैं पापा को और कष्ट में नहीं देख पाउँगा । प्लीज भगवान् आप पापा जी को अपने आगोश में ले लो । उनकी स्थिति को देखते हुए बस यही लगता था की आज का दिन ही पापा हमारे बीच हैं बस । मगर तीन चार दिनों से स्थिति बेहद खराब होती गई और उस दिन मेने पापा को मिश्री खाने को दी मगर वो खाने से मना करते हुए हाथ हिलाने लगे । मैंने भी थोड़ा नाराज होते हुए कहा आप खाओगे नहीं कुछ भी तो कैसे चलेगा , आपको इसी बजह से कमजोरी है और बुखार भी इसी कारण शायद । मगर पिता जी मेरे से गुस्से हो गए उन्होंने आँखे बंद कर ली और बड़े भाई को करवट बदलवाने का इशारा किया । मैं वहां से हट कर कुर्सी पर बैठ गया और अपने मोबाईल पर कुछ करने लगा , इतने में पिता जी ने बड़े भाई को खाने का इशारा करते हुए सभी को खाना खाने के लिए कहा हम सभी ने खाना खाया तो बाहर देखा चाचा जी भी पिता जी का हाल चाल पूछने पहुँच चुके थे । बस पिता जी ने तक़रीबन आधे घंटे तक चाचा जी से इशारों में ही कुछ वार्तालाप किया जो न तो चाचा जी को ही पूरा समझ आया और ना ही हम में से किसी को । बस इतने में ही करीब समय रात के पौने बजे पिता जी को बेहोशी का दौरा पडा और सभी ने एक दम उन्हें अपने हाथों पर उठा लिया बस फिर क्या बचा था । शेष जो था वो पिता जी का भोतिक शारीर मात्र  अब पिता जी इस संसार से हम सभी को छोड़ कर अपने नए पुड़ाव की और जा रहे थे और हम सभी रोते विलखते तड़फते खुद को अनाथ महसूस कर रहे थे, तब से लेकर आज का दिन कभी नहीं बुला और शायद न कभी भुलेगा , तारीख वही संयोग से दिन भी मंगलवार ही है मगर साल वो 2009 था और आज 2015 पिता जी आज आपके बच्चे को अनाथ हुए पूरे 6 वर्ष हो गए । इस जीवन के बाहर बहुत कुछ बदल चुका है , मगर भीतर बिलकुल वैसा ही है वही प्यार वही एहसास वही आभास वही आवाज सुनाई देती है मगर अब डर नहीं है आपका काश ये डर आज भी होता तो शायद में बहुत कुछ बना चुका होता । पापा अफ़सोस रहेगा उन बातों का जो मैंने आपकी नहीं मानी , आज किसी को बता नहीं पाता हूँ  मगर सजा उन्ही की पा रहा हूँ जब भी दुनिया के रंगों को देखता हूँ तो उस पल खुद को आग में उबलते महसूस करता हूँ । इन 6 वर्षों में अनंत बार आप मेरे सपनो में आये होंगे मगर फिर भी अब वो बात कहाँ जो इन 6 वर्षों से पहले आपके साथ चूल्हे के आर पार बैठ कर होती थी । आई लव यु पापा लव यु ए लोट । आप जहाँ भी रहो बस खुस रहो और अगले जन्म एक बार फिर मेरे पिता बन कर मुझे अपनी सेवा का अवसर दो पापा , पता है मैंने इक्का दुक्का शरारतो को छोड़ कर कभी आपको दुखी नहीं किया होगा मगर फिर भी दो इच्छाएं , पहली मुझे अपने साथ रखकर मुझे खाना बनाकर खिलाने की और दूसरी जल्द से शादी करने की पूरी नहीं कर पाया । तो पापा अब आपको कैसे बताऊँ की मैं उन दोनों को अभी तक भी पूरी नहीं कर पाया हूँ । पापा बस अब कुछ भी नहीं कह पाउँगा अगर आप देख रहे हों तो जरुर स्पर्श कर दो मेरे सर पे अपना वही वाला हाथ रख दो न जो कभी बचपन में आपके पैर छुते समय रखते रखते थे ।  


।।अंत में पापा आपके अनाथ बच्चे की और से आपको आश्रुपुरक श्रधान्जली ।।


                           आपका संजय 

1 टिप्पणी:

  1. प्यारे पापा के प्यार भरे'
    सीने से जो लग जाते हैं |
    सच्च कहती हूँ विश्वास करो,
    जीवन में सदा सुख पाते हैं |

    जवाब देंहटाएं

मेरे लिखे किसी भी लेख या उसके किसी लाईन, शब्द या फिर चित्रों से आप सहमत या असहमत हो सकते हैं , अत: आप मर्यादित भाषा का उपयोग करते हुए मेरे लेख पर टिपण्णी कर सकते हैं , अच्छे और बुरे दोनों ही परिस्थितियों में आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार रहेगा , क्यूंकि आपकी प्रतिक्रिया की मुझे आगे लिखते रहने के लिए प्रेरित करेगी ।